जवाना अउर लोग
जवाना अउर लोग
रहे जवाना एगो अइसन सबके पेट भरात रहे ।
रहे चुलहा एके गो लेकिन सब केहू मिल बाट के खात रहे ।
दादी रहली, चाची रहली, भाभी संघे भतीजी रहली
केहू ना चिल्लात रहे
रहे चूल्हा एके गो लेकिन सब केहू मिल बाट के खात रहे ।
परदादी से परपोता लेक, फूफा से ले मौसा लेक
नहियर कहs चाहे ससुरा लेक, सभे आवत जात रहे
भाई, भतीजा, भईया, भाभी केहू ना खिसियात रहे
रहे चूल्हा एके गो लेकिन सब केहू मिल बाट के खात रहे ।
परदादी से सभे सुने, आपन मुह से कुछ ना धुनें
बोले बतियावे हँसे हंसावे अपनापन के एहसास रहे
चाचा -चाची, फुआ,पापा केहू ना रिसियात रहे
रहे चूल्हा एके गो लेकिन सब केहू मिल बाट के खात रहे
लेकिन अब अईसन जुग आइल
तिनका तिनका सभे बटाईल
नाता रिस्ता दूर फेकाईल
आपन चूल्हा, आपन चौकी, आपन बेलना आपन खेलना अउर गैर सोहाइल ।

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु